शनिवार, 29 सितंबर 2018

कृषि प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन

प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और वर्षा सिंचित खेती प्रणाली के कार्यक्रम और योजनाएं

भूमि पौधों और अन्य जीवों के लिए जल और अन्य पोषक तत्त्वों के भंडार के रूप में कार्य करती है। खाद्य, ऊर्जा और अन्य मानवीय आवश्यकताओं की मांग भूमि की उत्पादकता के संरक्षण और सुधार पर निर्भर करती है। भारत की जनसंख्या विश्व की 18' और पशुओं की 15' है, जिसके लिए भौगोलिक

क्षेत्र का 2' और 1.5' वन तथा चरागाह है। मानव और पशुओं की जनसंख्या में पिछले दशकों में हुई वृद्धि से प्रतिव्यक्ति भूमि की उपलब्धता कम हुई है। प्रति व्यक्ति उपलब्धता 1951 के 0.89 हेक्टेयर के मुकाबले 1991 में 0.37 हेक्टेयर हो गई और यह 2035 में 0.20 हेक्टेयर हो जाएगी। जहां तक कृषि भूमि का सवाल है, वह 1951 के 0.48 हेक्टेयर के मुकाबले 1991 में 0.16 हेक्टेयर हो गई और इसके 2035 तक गिरकर 0.08 हेक्टेयर हो जाने की संभावना है। प्रतिव्यक्ति भूमि की उपलब्धता जनसंख्या वृद्धि के कारण कम हो रही है।

भारत के कुल 32 करोड़ 87 लाख हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र का 14 करोड़ 10 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य है। इसका 5.7 करोड़ हेक्टेयर (40') सिंचित और 8.5 करोड़ हेक्टेयर (60') वर्षा सिंचित है। यह क्षेत्र वायु और जलीय क्षरण और सघन कृषि उत्पादन के कारण क्षरण के विभिन्न चरणों पर निर्भर करता है। इसलिए अधिकतम उत्पादन प्रति इकाई भूमि और प्रति इकाई जल से सुधार की जरूरत है। वर्षा आधारित कृषि में उत्पादकता और लागत दोनों कम होती है। फसल उत्पादन साल दर साल वर्षा में अस्थायित्व पर निर्भर करता है। वर्षा आधारित क्षेत्रों में 20 करोड़ से अधिक ग्रामीण गरीब रहते हैं।

जोखिम भरे क्षेत्रों में व्यापक बदलाव और पैदावार में अस्थिरता दिखाई देती है। देश में भूमि क्षरण का आकलन विभिन्न एजेंसियों ने किया है। क्षरित भूमि की पहचान और उनके अंकन में अलग तरीके अपनाने से इन एजेंसियों के अनुमानों में व्यापक अंतर है जो 6.39 करोड़ हेक्टेयर से 18.7 करोड़ हेक्टेयर तक है। भूमि क्षरण का आकलन मुख्य रूप से राष्ट्रीय कृषि आयोग (1976), बंजर भूमि विकास संवर्धन सोसायटी (1984), राष्ट्रीय दर संवेदी एजेंसी (1985), कृषि मंत्रालय (1985) और राष्ट्रीय भूमि सर्वे और भूमि उपयोग ब्यूरो (1984 तथा 2005) ने किया। देश भर में भूमि क्षरण के कई रूप हैं। व्यापक और आवधिक वैज्ञानिक सर्वे न होने के कारण अनुमान स्थानीय सर्वेक्षणों और अध्ययनों पर आधारित हैं। वर्ष 2005 में आईसीएआर के नागपुर स्थित राष्ट्रीय भूमि सर्वे और भूमि उपयोग ने प्रकाशित किया है कि 14.68 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र विभिन्न प्रकार के भूमि क्षरण से प्रभावित है। इसमें 9.36 करोड़ हेक्टेयर जलीय क्षरण, 94.8 लाख हेक्टेयर वायु क्षरण, 1.43 करोड़ हेक्टेयर जल क्षरण। बाढ़, 59.4 लाख हेक्टेयर खारापन। क्षारीय, 1.6 करोड़ हेक्टेयर भूमि अम्लता और 73.8 लाख हेक्टेयर जटिल समस्या शामिल है।

भूमि विकास के लिए जलसंभरण कार्यक्रम

विभिन्न जल संभरण विकास कार्यक्रम, यथा (i) वर्षासिंचित क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय जलसंभरण विकास परियोजना (एनडब्लूडीपीआरए) (ii) नदी घाटी परियोजना और बाढ़ प्रवृत नदी के जलग्रहण क्षेत्र में भूमि संरक्षण (आरवीवी और पीपी आर) (iii) क्षारीय और अम्लीय भूमि की पुनर्प्राप्ति और विकास (आरएडीएएस) (i1) झूम खेती क्षेत्रों में जलसंभरण विकास परियोजना (डब्लूडीपीएससीए) का कार्यान्वयन हो रहा है।

जलसंभरण विकास योजनाएं/कार्यक्रम — प्रभागवार और कार्यक्रमानुसार विवरण निम्नलिखित हैं—

एनआरएम की योजनाएं और कार्यक्रम

देश में भूमि-क्षरण को रोकने और क्षरित भूमि की उत्पादन क्षमता बहाल करने के उद्देश्य से प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन केंद्र प्रायोजित तीन कार्यक्रमों और केंद्रीय क्षेत्र की तीन योजनाओं का क्रियान्वयन कर रहा है। योजनावार कार्यक्रम/योजनाओं की विशिष्ट बातें हैं —

केंद्रीय/क्षेत्र योजना (योजना और गैर योजना) एसएलयूएसआई — केंद्रीय क्षेत्र की योजना भारतीय भूमि एवं भूमि उपयोग सर्वे जलग्रहण। जलसंभरण के भूमि का सर्वे करता है। संगठन जिलावार भूमि क्षरण नक्शा तैयार करने में भी लगा है। इसके 2009- 10 के प्रस्तावित लक्ष्य इस प्रकार हैं —

(अ) त्वरित गहन सर्वेक्षण (आरआरएएन)- 156.00 लाख हेक्टेयर

(ब) विस्तृत भूमि सर्वेक्षण (डीएसएस)- 1.60 लाख हेक्टेयर

(स) क्षरित भूमि का मानचित्र (एलडीएम)- 0.10 लाख हेक्टेयर

(द) भूमि संसाधन मानचित्र (एसआरएम)- 161.00 लाख हेक्टेयर

लक्ष्य पूर्ति के लिए योजना के तहत 14 करोड़ रूपए और गैर योजना के लिए 2.32 करोड़ रूपए आवंटित किए गए है।

एससीटीसी-डीवीसी (गैर योजना) — राज्य सरकारों के तहत भूमि और जल संरक्षण के लिए कार्य करने वाले अधिकारियों के प्रशिक्षण क्षमता निर्माण के लिए हजारीबाग स्थित दामोदर घाटी निगम में भूमि संरक्षण प्रशिक्षण केंद्र को वित्तीय सहायता प्रदान कर गैर योजना स्कीम के रूप में क्रियान्वित किया जा रहा है। वर्ष 2009-10 में विभिन्न अल्प और मध्यकालिक पाठ्यक्रमों के लिए 0.45 करोड़ रूपए आवंटित किए गए हैं।

डब्लूडीपीएससीए (योजना) — पूर्वोत्तर के राज्यों में राज्य योजना को 100' विशेष केंद्रीय सहायता से झूम खेती वाले क्षेत्रों में जलविभाजक विकास परियोजना लागू की जा रही। इस योजना के तहत दसवीं योजना में 3.03 हेक्टेयर क्षेत्र में कार्य हो चुका है। 2009-10 में लगभग 0.40 लाख हेक्टेयर क्षेत्र इसके तहत लाया जाएगा, जिस पर लगभग 40 करोड़ रूपए व्यय होंगे। केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम (योजना-एमएमए के तहत शामिल) आरवीपी और पीपीआर — नदी घाटी जल ग्रहण एवं बाढ़ोन्मुख नदी क्षेत्र में भूमि संरक्षण के तहत शुरू से दसवीं योजना तक 65.27 लाख हेक्टेयर का उपचार किया गया। 2009-10 में 290 करोड़ रूपए की लागत से 2.80 हेक्टेयर का लक्ष्य रखा गया है।

आरएडीएएस — क्षारीय और अम्लीय भूमि सुधार और विकास कार्यक्रम क्षारीय भूमि वाले राज्यों में लागू किया जा रहा है। शुरू से दसवीं योजना तक 0.59 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य बनाया गया। 2009-10 में 14 करोड़ रूपए की लागत से 0.25 हेक्टेयर को कृषि योग्य बनाए जाने का लक्ष्य है। क्षरित भूमि के विकास के लिए आरएफएस प्रखंड की योजनाएं/कार्यक्रम आरएफएस डिवीजन वर्षा सिंचित क्षेत्रों सहित क्षरित भूमि के विकास के लिए कुछ कार्यक्रम चला रहा है। प्रमुख कार्यक्रम इस प्रकार हैं —

(अ) वर्षा सिंचित क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय जलसंभरण विकास परियोजना-(एनडब्लूडीपीआरए) वर्ष 1991-92 में 28 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में वर्षा सिंचित क्षेत्रों के लिए एक राष्ट्रीय जलसंभर विकास परियोजना एकीकृत जलसंभरण प्रबंधन और सतत् कृषि प्रणाली की अवधारणा के साथ लागू की गई। शुरू से दसवीं योजना के अंत तक कार्यक्रम के तहत 94.02 लाख हेक्टेयर भूमि विकसित की गई है। लघु जलसंभरण सहित 30 लाख हेक्टेयर विकसित करने का प्रस्ताव है। 2009-10 में 300 करोड़ रूपए की अनुमानित लागत से 2.80 हेक्टेयर का लक्ष्य रखा गया है।

(ब) राष्ट्रीय वर्षा सिंचित प्राधिकरण (एनआरएए)-देश के वर्षा सिंचित क्षेत्रों की समस्या पर ध्यान देने के लिए केंद्र सरकार ने 3 नवंबर, 2006 को राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण का गठन किया है। प्राधिकरण सलाह, नीति निर्धारण और निगरानी के साथ वर्तमान परियोजनाओं में दिशानिर्देशों की जांच के अलावा क्षेत्र में बाहरी सहायता से चलने वाली परियोजनाओं सहित नई परियोजनाएं तैयार करता है। इसका अधिकतर क्षेत्र केवल जल संरक्षण ही नहीं, बल्कि उचित कृषि और जीविका प्रणाली सहित वर्षा सिंचित क्षेत्रों का सतत और समग्र विकास है। यह भूमिहीनों और सीमांत किसानों के मुद्दों पर भी ध्यान देगा क्योंकि वर्षा सिंचित क्षेत्रों में उनकी संख्या अधिक है।

प्राधिकरण का ढांचा द्विस्तरीय है। पहला शासी निकाय है, जो कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिए उचित नेतृत्व और समन्वय का कार्य करता है। केंद्रीय कृषि मंत्री इसके अध्यक्ष और केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री सह-अध्यक्ष हैं। दूसरी कार्यकारी समिति है जिसमें तकनीकी विशेषज्ञ और संबद्ध मंत्रालयों के प्रतिनिधि हैं। कार्यकारी समिति में एक प्रमुख मुख्य कार्यकारी अधिकारी होता है, उसमें पांच पूर्णकालिक तकनीकी विशेषज्ञ भी हैं। प्राधिकरण 14 मई, 2007 से कार्य करने लगा है। प्राधिकरण में पांच में से चार तकनीकी विशेषज्ञ अतिरिक्त सचिव स्तर के हैं। कृषि/बागवानी क्षेत्र के विशेषज्ञों की नियुक्ति की प्रक्रिया जारी है। प्राधिकरण ने जलसंभरण विकास परियोजना के साझा दिशा-निर्देश तैयार किए और शासी निकाय की स्वीकृति के बाद उन्हें तदनुसार क्रियान्वयन के लिए सभी राज्यों को जारी कर दिया गया है।

(स) वर्षा सिंचित क्षेत्र विकास कार्यक्रम (आएडीपी)-केंद्रीय वित्त मंत्री ने 2007-08 में वर्षा सिंचित क्षेत्र विकास कार्यक्रम की घोषणा की थी। योजना आयोग ने केंद्र प्रायोजित इस योजना के क्रियान्वयन के लिए ग्यारहवीं योजना में 3500 करोड़ रूपए की लागत से लागू करने की सिद्धांतरूप से सहमति प्रदान कर दी है। इसके अलावा उसने एनआरएए के लिए 170 करोड़ रूपए और 20 मार्च, 2008 को जारी किए गए। योजना आयोग और विभिन्न मंत्रालयों/विभागों/प्रखंडों की टिप्पणियों पर आधारित संशोधित 3330 करोड़ रूपए के आवंटन के आधार पर नोट वित्त मंत्रालय और योजना आयोग को भेजे जा चुके हैं। कार्यक्रम के तहत ग्यारहवीं योजना में 30 लाख हेक्टेयर वर्षा सिंचित क्षेत्र शामिल किए जाने की उम्मीद है।

प्रचालन दिशा-निर्देशों का निरूपण और वितरण

राष्ट्रीय वर्षा सिंचित प्राधिकरण ने देश जलसंभरण विकास परियोजनाओं को लागू करने के लिए दिशा - निर्देश जारी किए हैं। निर्देशों के अनुसार एनडब्लूडीपीआरए, आरवीपी एवं पीपीएम तथा आएडीएस कार्यक्रमों के बारे में राज्यों को परिचालन संबंधी दिशा-निर्देश दिए गए हैं। झूम खेती क्षेत्र के बारे जलसंभरण विकास कार्यक्रम के लिए भी दिशा-निर्देश राज्य सरकारों को भेजे जा चुके हैं।

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