रविवार, 22 सितंबर 2019

भारतीय कृषि से जुड़े महत्‍वपूर्ण तथ्‍य और जानकारी



भारत एक कृषि प्रधान देश है. कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. भारत में कृषि सिंधु घाटी सभ्यता के दौर से की जाती रही है. 1960 के बाद देश में कृषि के क्षेत्र में हरित क्रांति के साथ नया दौर आया. भारत की खेती से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्‍य इस प्रकार हैं:

(1) भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग 51 फीसदी भाग पर कृषि, 4 फ़ीसदी पर पर चरागाह, लगभग 21 फीसदी पर वन और 24 फीसदी बंजर और बिना उपयोग की है. 

(2) देश की कुल श्रम शक्ति का लगभग 52 फीसदी भाग कृषि और इससे सम्बंधित उद्योग और धंधों से अपनी आजीविका चलता है.

 (3) 2004-2005 में भारत के निर्यात में कृषि और सम्बंधित वस्तुओं कानुपात लगभग 40 फीसदी रहा.

 (4) विश्व में चावल उत्पादन में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है. भारत में खाद्यान्नों के अंतर्गत आने वाले कुल क्षेत्र के करीब 47 फीसदी भाग पर चावल की खेती की जाती है.

 (5) विश्व में गेंहू उत्पादन में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है. देश की कुल कृषि योग्य जमीन के लगभग 15 फीसदी भाग पर गेंहू की खेती की जाती है.

 (6) देश में गेंहू के उत्पादन में उत्तर प्रदेश का प्रथम स्थान है, जबकि प्रति हेक्टेयर उत्पादन में पंजाब का प्रथम स्थान है.

 (7) हरित क्रांति(Green Revolution) का सबसे अधिक प्रभाव गेंहू और चावल की कृषि पर पड़ा है, परंतु चावल की तुलना गेंहू के उत्पादन में अधिक वृद्धि हुई.

 (8) भारत में हरित क्रांति लाने का श्रेय डॉक्टर एम एस स्वामीनाथन को जाता है. भारत में हरित क्रांति की शुरुआत 1967-1968 में हुई.

 (9) प्रथम हरित क्रांति के बाद 1983-1984 में द्वितीय हरित क्रांति की शुरुआत हुई, जिसमें अधिक अनाज उत्पादन, निवेश और किसानों को दी जाने वाली सेवाओं का विस्तार हुआ.

 (10) तिलहन प्रौद्योगिकी मिशन की स्थापना 1986 में हुई.

 (11) भारत विश्व में उर्वरक (फर्टिलाइजर) का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश है.

 (12) पोटाशियम फर्टिलाइजर का पूरी तरह आयात किया जाता है.

 (13) आम, केला, चीकू, खट्टे नींबू, काजू, नारियल, काली मिर्च, हल्दी के उत्पादन में भारत का स्थान पहला है.

 (14) फलों और सब्जियों के उत्पादन में भारत का स्थान दुनिया में दूसरा है.

 

फसल

प्रमुख उत्पादक राज्य

1.

चावल

पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, बिहार और पंजाब

2.

गेंहू

उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान

3.

ज्वार

महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और राजस्थान

4.

बाजरा

गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश

5.

दलहन

मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात और आंध्र प्रदेश

6.

तिलहन

मध्य प्रदेशगुजरातउत्तर प्रदेशबिहारराजस्थान, पश्चिम बंगाल और ओडिशा

7.

जौ

उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार और पंजाब

8.

गन्ना

उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, हरियाणा और पंजाब

9.

मूंगफली

गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू, कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश

10.

चाय

असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, त्रिपुरा, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश

11.

कहवा

कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र

12.

कपास

महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक, हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश

13.

रबड़

केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, असम और अंडमान निकोबार द्वीप समूह

14.

पटसन

पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, ओडिशा और उत्तर प्रदेश

15.

तम्बाकू

आंध्र प्रदेश, गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु

16

काली मिर्च

केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और पुडुचेरी

17

हल्दी

आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और बिहार

18

काजू

केरल, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश

शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

बादाम की खेती By Rudra Pandit

बादाम हालांकि एक मेवा होता है, किन्तु तकनीकी दृष्टि से यह बादाम के पेड़ के फल का बीज होता है। बादाम का पेड़ एक मध्यम आकार का पेड़ होता है और जिसमें गुलाबी और सफेद रंग के सुगंधित फूल लगते हैं। ये पेड़ पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसके तने मोटे होते हैं। इसके पत्ते लम्बे, चौड़े और मुलायम होते हैं। इसके फल के अन्दर की मिंगी को बादाम कहते हैं। बादाम के पेड़ एशिया में ईरान, ईराक, मक्का, मदीना, मस्कट, शीराज आदि स्थानों में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसके फल वानस्पतिक रूप से अष्ठिफल के रूप में जाने जाते हैं और उनमें एक बाह्य छिलका होता है तथा एक कठोर छाल के साथ अंदर एक बीज होता है। आमतौर पर बादाम बिना छिलके के ही मिलता है। इसका बीज निकालने के लिए छिलके को अलग करना होता हैबादाम एक गुलाब वर्गीय एक ऐसा पेड़  है जिसका फल   दिखने में आडू की तरह का होता है   बादाम के पेड़ में हल्के  गुलाबी और सफेद रंग के सुगंधित फूल लगते हैं। बादाम के पेड़  का  तना मोटा होते हैं। एवंम इसके पत्ते लम्बे, चौड़े और मुलायम होते हैं।

 

बादाम की खेती कहाँ होती है

बादाम की खेती प्राय: ठन्डे क्षेत्रो में की जाती है जिसे बीज के द्वारा भी लगाया जा सकता है  दुनियाभर में अमेरिका बादाम का सबसे बड़ा निर्यातक देश है जहा का कैलोफोर्निया बादाम दुनियाभर  में खाया जाता है जो की आकार में भारतीय बादाम से बड़ा होता है
इसके अलावा बादाम की खेती स्पेन, इटली, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, मोरक्को, पुर्तगाल, तुर्की, फ्रांस, अल्जीरिया, अफगानिस्तान और पर्सिया जैसे देशों में भी  बादाम की खेती की जा सकती है

भारत में बादाम की  खेती   की बात  जाये तो ये कश्मीर हिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड  जैसे ठन्डे क्षेत्रो  और चीन की सीमा से लगे  तिब्बत, लाहौल एवं किन्नोर जिले आदि में की जाती है

बादाम के प्रकार

बाजार में कई प्रकार की बादाम मिलतीहै जिसमे मामरा , केलिफोर्निया या अमरीकन बादाम तथा छोटी गिरी मुख्य हैं। मीठी बादाम  ही खाने में काम आती है। कड़वी बादाम का तेल निकाला जाता है

मामरा बादाम

मामरा बादाम और केलिफोर्निया बादाम में क्या फर्क होता है

 मामरा बादाम और  केलिफोर्निया बादाम में अंतर की बात करे तो जहा मामरा अफगानिस्तान में पैदा होता है एवंम  इसका उत्पादन अपेक्षाकृत कम होता है। वही अमरीकन बादाम केलिफोर्निया में पैदा होता है और इसका उत्पादन अत्यधिक मात्रा में होता है। इसका कारण वैज्ञानिक तरीके से खेती करना है।

बादाम की उन्नत किस्में

केलिफोर्निया पेपर सेल, नान पेरिल, ड्रेक, थिनरोल्ड, आई.एक्स.एल., नीप्लस अल्ट्रा,  मुख्य रूप से बादाम की किस्मे है

आप भी बादाम के प्लांट आसानी से उगा सकते हो | जुलाई के समय बादाम के प्लांट को आपने बगीचे में लगा सकते है
 

 

बादाम खेती के लिए आवश्यक जलवायु

बादाम की खेतीं के लिए  जलवायु की बात की जाये तो इसके लिए , गर्मियों में तापमान में 30 से 35 डिग्री सेल्सियस पौधे की वृद्धि और गिरी भरने के लिए  आवश्यक है एवमं  सर्दियों में 2.2 डिग्री सेल्सियस तक का सामना करना पड़ेगा, लेकिन पत्ती के गिरने के अवस्था में फूल 0.50 डिग्री सेल्सियस से -11 डिग्री सेल्सियस में क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। फूल जब  छोटे होते है तब वे  2.2 डिग्री सेल्सियस से 3.3 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान का सामना कर सकते हैं, लेकिन अगर कम तापमान निरंतर लंबे समय तक बने रहने पर ये फसल को आसानी से  नुकसान पंहुचा सकता हैं

बादाम कैसे उगायें ?

आप अपने बगीचें में बादाम का पौधा दो तरीके से उगा सकते है।

▪ स्वयं बादाम का बीज उगाकर
▪नर्सरी से बादाम का पौधा खरीद कर।

बादाम खाना जितना आसान है उतना ही कठिन इसे उगाना है।बादाम ठण्ठे मौसम में उगाया जाता है।अगर आप गर्म क्षैत्र में रहते है तो फिर आप  इसे केवल सर्दियों में ही उगा सकेगें।11 से 20 डिग्री मौसम इसके लिये सर्वोत्तम है।बादाम उगाने में कुछ सावधानियां रखनी होती है।

बीज से बादाम उगाने का तरीका।

▪बीज से बादाम उगाने के लिए बहुत धैर्य की जरूरत होती है । हमारे पास बादाम के उच्च क्वालिटी के स्वस्थ बीज होने चाहिए ।ध्यान रखें बादाम का अंकुरण प्रतिशत  कम होता है ।तो आप कम से कम 15 से 20 बीज एक बार में उगाने की कोशिश करें।

▪ बादाम के स्वस्थ बीजोंको  हम टिशू पेपर में रख कर पानी से भिगो दिया जाता है। इस टिश्यू पेपर में रखे बीजों को आप किसी ऐसी जगह रखें जहां लगातार 15 से 20 डिग्री का तापमान बना रहे। सर्दियों के समय आप इसे किसी भी जगह रख सकते हैं । मौसम गर्म होने पर फ्रिज की सहायता से यह काम किया जा सकता है। 20 दिन बाद बादाम के बीजों में अंकुरण शुरू होता है ।एक बार अंकुरण शुरू हो जाने पर आप बादाम के बीजों को सावधानी से टिशू पेपर से अलग करें । उसके बाद बादाम के अंकुरित बीजों को कोकोपीट में लगा दें । धीरे -धीरे 40 दिन बाद बादाम का अंकुरण छोटे पौधे का रूप ले लेता है। आपको इस समय बादाम को ज्यादा पानी नही देना  और  गर्मी से बचाकर रखना है

बादाम को हम रोपण करने से पहले,  लगभग 3 फुट  लम्बाई x 3 फीट  चोडा x 3 फीट गहरा  गड्ढे में  सितंबर से अक्टूबर के महीने के दौरान पक्तियों में  पौधे की पौधे से दुरी करीब 5 मीटर रखकर लगाना चाहिए  बादाम के पौधों को फरवरी से मार्च तक गड्ढे के केंद्र में लगाया जाना चाहिए,

बादाम 3 से 4 साल में फल देना शुरू कर देता है जो की पूरी तरह से फल देने लायक 6 साल में हो जाता है एक बादाम के पेड़ से इस तरह 50 साल तक बादाम के पेड़  से  फल प्राप्त  किये जा सकते है।

इस प्रकार बादाम को पौधा तैयार हो जाता है।तीन महीने बाद आप इन पौधों को जमीन में लगा सकते है।

बादाम खाने के नुकसान और फायदे :-
बादाम भारतीयों की  सबसे पसंदीदा गिरी है और खास मेवा है । यह सभी गिरियों में ज्यादा पोषक एवं औषधीय गुणयुक्त है। इसकी गिरी से महत्तवपूर्ण तेल बादाम रोगन प्राप्त होता है। जब गिरी पक जाती है तब तुड़ाई की जाती है। बादाम गिरी ऊर्जा का बहुत अच्छा स्रोत है। 100 ग्राम ताजी गिरी में 598 कैलोरी ऊर्जा, 19 ग्राम प्रोटीन, 59 ग्राम वसा तथा 21 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होता है  गुणों से भरपूर बादाम का बहुत आधिक मात्रा में सेवन करना हमारे शरीर के लिए नुकसान दायक होता है

सोमवार, 8 अक्टूबर 2018

आलू की फसल, उपज और संग्रहण

आलू की फसल पाना और रखना – प्रति एकड़ आलू की उपज

 

“मारना” फसल काटने से पहले व्यापक रूप से प्रयोग की जाने वाली एक तकनीक है। कई किसान सभी सिंचाई बंद करके, यांत्रिक विधियों से और/या रासायनिक पदार्थ छिड़ककर और पौधे के ऊपरी भाग को बिलकुल नष्ट करके आलू के पौधों को “मार” देते हैं। पौधों को मारने के बाद, वे फसल निकालने से पहले और 10-14 दिनों तक आलू को भूमि में ही रहने देते हैं। इस तरह आलू का छिलका मोटा हो जाता है, जो कई कारणों से कुछ बाज़ारों में पसंद किया जाता है (इससे आलुओं को चोट पहुंचाए बिना बहुत कम जोखिम के साथ कहीं पर भी पहुंचाया का सकता है)।

आलू लगाने के 2.5 से 4 महीने बाद, आलू तैयार होते हैं। आलुओं को आधुनिक आलू की कटाई करने वाले मशीनों से निकाला जाता है जो ट्रैक्टर में लगे होते हैं। मशीनें हल के फल का प्रयोग करके क्यारियों से आलू को उखाड़कर इसकी कटाई करती हैं। मिट्टी, धूल, पत्थर और आलुओं को कई जालों की श्रृंखला में भेजा जाता है जहाँ आलू बाहरी सामग्रियों से अलग किये जाते हैं।

आलू की खेती के पहले वर्ष के दौरान, प्रति हेक्टेयर 25 टन या प्रति एकड़ 10 टन (प्रति एकड़ 22.000 पाउंड) को अच्छी उपज माना जाता है। वर्षों के अभ्यास के बाद अनुभवी किसान प्रति हेक्टेयर 40 से 70 टन, या प्रति एकड़ 16 से 28 टन की उपज पा सकते हैं। इस बात को ध्यान में रखें कि 1 टन = 1000 किलो = 2.200 पाउंड और 1 हेक्टेयर = 2.47 एकड़ = 10.000 वर्ग मीटर होता है।

आलुओं की कटाई के बाद, इसे किसी ठंडे (40 डिग्री फॉरेनहाइट/4.4 डिग्री सेल्सियस) स्थान पर रखना चाहिए लेकिन यह अत्यधिक ठंडा, अंधेरा, नम स्थान नहीं होना चाहिए। उचित स्थितियों में आलू को आमतौर पर कई महीनों तक रखा जा सकता है। व्यावसायिक रूप से आलू उगाने वाले किसान अपने आलुओं को विशेष रूप से आलू रखने के लिए निर्मित किये गए बड़े भवनों में रखते हैं। विशेषीकृत वायु संचार प्रणालियां तापमान और नमी को समरूप रखती हैं

आलू के कीड़े और रोग

आलू के पौधों पर लगने वाले सामान्य कीड़े और रोग

 

दुर्भाग्य से, दुनिया भर में अक्सर आलू के पौधे विभिन्न कीड़ों और रोगों से ग्रस्त रहते हैं। फसल चक्र और जुताई कीड़ों और रोगों के विरुद्ध सबसे पहली सावधानी हैं। दूसरी सावधानी के रूप में आपको केवल प्रमाणित रोग-मुक्त आलू के बीज खरीदने चाहिए।

अमेरिका में खेती करने वाले लोगों के लिए कोलोराडो आलू का झींगुर (लेप्टिनोटर्सा डेसेमलिनटा) सबसे बड़ी समस्या है। यह कीड़ा पत्तियों को खाता है और धीरे-धीरे फसल सड़ा देता है। वयस्क झींगुर बसंत ऋतु में निकलते हैं। बैसिलस थ्युरिंजेंसिस लार्वा से लड़ने में प्रभावी है लेकिन इसे कई बार डालना चाहिए (अपने क्षेत्र के लाइसेंस-प्राप्त कृषि विशेषज्ञ से पूछें)।

लेट ब्लाइट। लेट ब्लाइट ओमेसिट रोगाणु फाइटोफ्थोरा इन्फेस्टन की वजह से होता है। सही मौसमी स्थितियों में एक खेत से दूसरे खेत में तेजी से फैलने की अपनी क्षमता की वजह से लेट ब्लाइट को ‘सामुदायिक रोग’ के रूप में दर्शाया जाता है। मौसम ठंडा और नम होने पर अलैंगिक बीजाणु हवा के माध्यम से आसानी से फैलते हैं और पड़ोसी खेतों को आसानी से संक्रमित कर सकते हैं। फाइटोफ्थोरा इन्फेस्टन के संक्रमण का टमाटर और आलू की फसल पर बहुत विनाशकारी प्रभाव हो सकता है, क्योंकि इसका पता नहीं चलने पर यह केवल कुछ दिनों में पूरे खेत को बर्बाद कर सकता है। दुर्भाग्य से, ये रोगाणु भूमि में कई महीनों तक रह सकते हैं, जिसकी वजह से इन्हें नियंत्रित करना कठिन होता है। 

पोटैटो वायरस वाई भी आलू की खेती बर्बाद कर सकता है। इसके लक्षणों में पत्तों के थोड़े चित्तीदार होने से लेकर उनके गलने और पौधे का नाश तक शामिल है। 

आलू की पानी की आवश्यकताएं और सिंचाई प्रणाली

आलू की सिंचाई कैसे करें – आलू की सिंचाई संबंधी आवश्यकताएं

आलू की खेती में सबसे ज्यादा प्रयोग की जाने वाली सिंचाई प्रणालियों में टपकन सिंचाई (व्यापक श्रम आवश्यक), छिड़काव प्रणालियां, ऊपरी रेन गन, और बूम सिंचाई शामिल हैं।

एफएमओ के अनुसार, ज्यादा उत्पादन के लिए, जलवायु के अनुसार 120 से 150 दिन की फसल के लिए 500 से 700 मिमी पानी की जरुरत होती है। पौधे के विकास के शुरूआती चरणों के दौरान आमतौर पर आलू के पौधों के लिए पानी की जरूरतें काफी कम होती हैं और पौधा बड़ा होने पर और कंद के विकास के आगे के चरणों में पानी की जरुरत धीरे-धीरे बढ़ती है। सर्दियों की खेती के लिए, कई किसान ज्यादा से ज्यादा सप्ताह में दो बार सिंचाई करते हैं (बारिश के आधार पर), जबकि सूखे के दौरान आमतौर पर ज्यादा सिंचाई की जरुरत होती है। रेतीली मिट्टी में, किसानों को भारी मिट्टियों की तुलना में ज्यादा बार सिंचाई करना पड़ता है। मिट्टी का हर समय गीला होना जरुरी है। उपज अच्छी बनाने के लिए, मिट्टी में कुल उपलब्ध पानी की मात्रा 30 से 50% से कम नहीं होनी चाहिए। हालाँकि, इस बात को ध्यान में रखें कि ज्यादा सिंचाई से अपक्षय, बीमारी की संभावना, पानी की कमी, पम्पिंग की अतिरिक्त ऊर्जा लागत, नाइट्रोजन की कमी, और फसल की पैदावार में कमी हो सकती है। वहीं दूसरी ओर, जिन पौधों में पानी की कमी होती है उनके लिए बीमारियों का ज्यादा खतरा होता है।