केंद्र सरकार और संबद्ध राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त क्षेत्र की कंपनियों के रूप में 17 राज्य कृषि उद्योग निगमों की स्थापना की गई है। इन निगमों का उद्देश्य कृषि मशीनों का निर्माण और वितरण, कृषि निवेशों का वितरण, कृषि-आधारित उद्योगों की स्थापना और संचालन को प्रोत्साहन तथा किसानों और अन्य लोगों को तकनीकी सुविधाएं उपलब्ध कराना तथा परामर्श देना है। 1965 से 1970 के बीच आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में इनकी स्थापना हुई। कई राज्य सरकारों ने अपनी पूंजी बढ़ा दी है। छह राज्य कृषि उद्योग निगमों- उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, राजस्थान, गुजरात और पश्चिम बंगाल में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी नहीं रही है। केंद्र सरकार ने इन राज्य सरकारों के पक्ष में अपने शेयरों का विनिवेश कर दिया है।
विधायी ढांचा
खतरनाक मशीन (नियमन) अधिनियम, (1983) 14 सितंबर, 1983 से प्रभावी हुआ। इस अधिनियम में खतरनाक मशीनें बनाने वाले किसी उद्योग के व्यापार, वाणिज्य और उत्पादन, तथा उत्पादों की आपूर्ति एवं उपयोग के नियमन का प्रावधान है, ताकि ऐसी मशीनें चलाने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इसमें ऐसी मशीनों के संचालन के समय होने वाली दुर्घटना में मृत्यु या शारीरिक अपंगता की स्थिति में मुआवजे के भुगतान-संबंधी प्रावधान भी किए गए हैं। फसलों की गहाई (थ्रेशिंग) में प्रयुक्त पावर थ्रेशरों को इस अधिनियम की परिधि में लाया गया है। केंद्रीय सरकार ने खतरनाक मशीन (नियमन) अधिनियम, 1985 को अधिसूचित कर पावर थ्रेशर लगाने आदि के बारे में विशेष निर्देश दिए हैं। पावर थ्रेशर के अतिरिक्त चैफ-कटर और गन्ने के कोल्हू को भी इस अधिनियम के दायरे में लाने का प्रस्ताव है।
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