चना एक बहु उपयोगी दलहनी फसल है । चने में 21.1 प्रतिशत प्रटीन, 4.5 प्रतिशत, वसा 61.35 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट तथा इसके अतिरिक्त पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम, आयरन, राइबोफ्लेविन तथा नियासीन आदि तत्व भी पाए जाते हैं । इसके भूसे को पशु बड़े चाव से खाते हैं क्योंकि इसकी पत्तियों में मैलिक तथा आक्जैलिक अम्ल पाए जाने के कारण इसमें हल्की खटास पाई जाती है । चने का अच्छा उत्पादन लेने के लिए अच्छे बीज की आवश्यकता पड़ती है । इसका बीज उत्पादन करने के लिए हमारे किसान भाई कुछ मुख्य बातों पर ध्यान दे ंतो निश्चित ही अपने ही प्रक्षेत्र पर सावधानी पूर्वक चने का बीज उत्पादित कर लेंगे ।
भूमि
उचित जल निकास वाली दोमट, बलुई मिट्टी अच्छी होती है । ऐसी भूमि जिसका पी.एच.मान 6 से 7 के बीच होता है वह चना उत्पादन के लिए उपयुक्त होती है । ज्यादा जल धारण क्षमता या सीपेज वाली जमीन चने के लिए अनुपयुक्त होती है । ऐसी जमीन में चने की खेती अच्छी नहीं होती है ।
खेत की तैयारी
छो जुताई मिट्टी पलटने वाले हैरो से करते हैं । फिर दो-तीन जुताई कल्टीवेटर से या देशी हल से करते हैं, या एक ही जुताई रोटावेटर से कर लेते हैं । अंत में पाटा चलाकर खेत तैयार कर लेते हैं । पहली जुताई की गहराई लगभग 9 इंच रखनी चाहिए ।
भूमि शोधन
भूमि शोधन के लिए फाॅस्फेटिका कल्चर 2.5 किग्रा. तथा चने का राइजोबियम 2.5 किग्रा. और ट्राइकोडर्मा पाउडर 2.0 किग्रा. इन तीनों जैविक कल्चरों को एक एकड़ खेत के लिए 100 से 120 किग्रा. गोबर की सड़ी खाद में मिला कर 4-5 दिनों के लिए जूट के बोरे से ढकने के बाद खेत की तैयारी में अंतिम जुताई के समय छिटक कर तुरंत मिट्टी में मिला देते हैं । मिट्टी के लाभदायक सूक्ष्म जीवों की संख्या में वृद्धि होती है ।
वायुमण्डल के नाइट्रोजन को पौधों की जड़ों में तथा मिट्टी में संचित होने में सहायता मिलती है ।पौधों की दैहिक क्रिया में वृद्धि नियामकों, आॅक्जिन और विटामिन की वृद्धि होती है । मृदा में उपस्थित न उपलब्ध होने वाले पोषक तत्वों को उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिक निभाता है । मृदा संरचना में सुधार होता है तथा रोग-रोधक क्षमता में वृद्धि में सुधार होता है तथा रोग-रोधक क्षमता में वृद्धि होती है ।
पृथककरण दूरी
चने की फसल सामान्यत: स्वपरागित फसल है । इसलिए जनक या आधारीय बीज के लिए पृथककरण दूरी 10 मीटर रखते हैं तथा प्रमाणित बीज उत्पादन के लिए 5 मीटर आवश्यकता होगी है ।
बीज की मात्रा एवं शोधन
छोटा दाना-75-80 किग्रा. प्रति हैक्टेयर, बड़ा दाना 90-100 किग्रा. प्रति हैक्टेयर ।
बीज शोधन एवं लाभ
बीज जनित रोगों से बचाव के लिए ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम. या थिरम 2 ग्राम या मैंकोेजेब 3 ग्राम को प्रति किग्रा. बीज की दर से बीज उपचारित करना चाहिए । प्रति 10 किग्रा. बीज में एक-एक पैकेट अर्थात 200 ग्राम चने का राइजोबियम कल्चर एवं पी.एस.वी. कल्चर प्रयोग करना चाहिए ।
लाभ
वायु मण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण होता है तथा पौधों को जैविक नाइट्रोजन मिलता है । मिट्टी के लाभदायक जीवाणुओं को जीवित रखने में रहायता मिलती है । जैविक एजेन्ट या बायो एजेन्ट जीवित जीवाणु होते हैं । इसलिए इनकी निर्माण तिथि तथा प्रयोग कर सकने की अन्तिम तिथि देखकर ही प्रयोग करना चाहिए । जैव एजेन्टों से बीज-शोधन के बाद बीजों को सूरज की गर्मीं और धूप से बचाना चाहिए । बायो-एजेन्ट से उपचारित बीज को रासायनिक उर्वरकों में नहीं मिलाना चाहिए ।
बुआई की दूरी
समय से बुआई के लिए लाइन से लाइन 45 सेमी. बीज से बीज 30 सेमी. तथा बीज की गहराई 6-8 सेमी. रखते हैं । विलम्ब से बुआई के लिए लाइन से लाइन 30 सेमी. बीज से बीज 30 सेमी. तथा बीज की गहराई 6-7 सेमी. रखते हैं ।
बुआई का समय
सिंचाई दशा में बुआई का समय-समय से 15 अक्टूबर से नवम्बर के द्वितीय सप्ताह तक, विलम्ब से – 15 नवम्बर से दिसम्बर के प्रथम सप्ताह तक । असिंचित दशा में – अक्टूबर के द्वितीय अथवा तृतीय सप्ताह तक अवश्य कर देनी चाहिए ।
नोट: देर से पकने वाले प्रजापतियों की बुआई समय सेे अवश्य कर देना चाहिए अन्यथा उपज में कमी हो जाती है ।
बुआई की विधि
बुआई हल के पीछे कूँड़ों में 6 से 8 सेमी. गहराई पर करनी चाहिए । ज्यादा क्षेत्रफल होने पर छिटकवा विधि से बुआई की जा सकती है । बुआई के समय भूमि में उचित नमी होना अनिवार्य होता है ।
खाद एवं उर्वरक
खाद एवं उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना चाहिए । अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए कम्पोस्ट खाद 80 से 100 कुन्टल प्रति हैक्टेयर प्रयोग अवश्य करें ।
उर्वरक की मात्रा
20 किग्रा. नाइट्रोजन, 60 किग्रा. फाॅस्फोरस एवं 20 किग्रा. पोटाश तथा अन्य तत्वों की पूर्ति के लिए गन्धक 20 किग्रा. सूक्ष्म पोषक तत्व मिश्रण 20 से 25 किग्रा. । असिंचित अथवा देर से बुआई की दशा में 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव फूल आने के समय करना लाभकारी रहता है ।
खाद एवं उर्वरक प्रयोग विधि
प्रयोग की जाने वाली जैविक खाद अर्थात् कम्पोस्ट खादें जैसे – वर्मी कम्पोस्ट, नाडेप कम्पोस्ट, गोबर की सड़ी खाद या अन्य कोई कार्बनिक खाद का प्रयोग खेत की तैयारी करते समय अच्छी तरह मिट्टी में मिला देना चाहिए और इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि इन खादों को जब खेत में छिटक दिया जाए तो ज्यादा देर धूप नहीं लगनी चाहिए । जल्दी से जल्दी उसे मिट्टी में मिलाना आवश्यक होता है। बुआई से पहले मिट्टी में नाइट्रोजन, फाॅस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा कूँड़ो में बीज के 2-3 सेमी. नीचे देना चाहिए ।
सिंचाई
चने में प्रथम सिंचाई बुआई के 45-60 दिन बाद तथा दूसरी सिंचाई फलियों में दाना बनते समय की जानी चाहिए । वैसे सामान्यतः यदि जाड़े की वर्षा हो जाए तो दूसरी सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है । सिंचाई का निर्धारण मिट्टी की दशा एवं प्रजाति के आधार पर करना चाहिए ।
नोट
फूल आते समय सिंचाई नहीं करनी चाहिए अन्यथा लाभ के बजाये हानि हो जाती है । बुआई के बाद खेत को छोटी-छोटी क्यारियों एवं पट्टियों में बाँट कर सिंचाई करनी चाहिए । हल्की भूमि में 6 सेमी. गहरी सिंचाई एवं भारी भूमि में लगभग 8 सेमी. गहरी सिंचाई करनी चाहिए ।
खरपतवारों का नियंत्रण
चने में अच्छी उपज के लिए खरपतवारों का समुचित नियंत्रण आवश्यक होता है क्योंकि चने की प्रारम्भिक काल में वृद्धि कम होने के कारण खरपतवार फसल को काफी नुकसान पहुँचाते हैं । इसलिए बुआई के 45 दिन बाद एक निराई अवश्य कर देनी चाहिए । यदि अधिक खरपतवार वाला क्षेत्र हो तो दो निराई बुआई 30 तथा 60 दिन बाद करना उचित रहता है । निराई के लिए खुरपी, हैण्डहो अथवा व्हील हो द्वारा करना लाभकारी रहता है । क्योंकि निराई करने से खेत में वायु संचार अच्छा हो जाता है । जिससे फसल अच्छी पैदा होती है । चना में मुख्यतः चैड़ी पत्ते में मकोय, जंगली चैलाई, लटजीरा, बिच्छु घास, बथुआ, हिरनखुरी, कृष्णनील, बड़ी दुद्धी, सत्यानाशी आदि खरपतवार पाये जाते हैं जिनको 1 या 2 बार निराई के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है ।
रासायनों द्वारा नियंत्रण
बुआई ये पहले 2.2 लीटर फ्लूक्लोरोलिन 45 ई.सी. की दवा 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर बुआई करनी चाहिए अथवा पेण्डीमेथिलीन 30 ई.सी. नामक दवा की 3 से 3.30 लीटर मात्रा को बुआई के 72 घंटे के अन्दर फ्लैट फैन नोजल से जमीन पर छिड़कना चाहिए ।
रोगिंग
चने की फसल में दो बार रोगिंग क्रिया करनी चाहिए । इस क्रिया से चने के खेत में अन्य प्रजाति के बीज एवं पौध तथा खरपतवार निकल जाते हैं । य क्रिया चने में फूल आने के बाद एवं दाना बनने के बाद दो बार करनी चाहिए ।
कटाई-मड़ाई
जब चने के दानों में लगभग 20 प्रतिशत नमी रह जाए तो उसी समय फसल काट कर खेत में कटाई कर देनी चाहिए । और उसको हल्का सुखाकर खलिहान में लाकर एक सप्ताह तक अच्छी तरह धूप में सुखाना चाहिए । इसके बाद बैलों अथवा ट्रैक्टर से कुचल कर मड़ाई करके ओसाई द्वारा दाना एवं भूसा अलग कर लेना चाहिए ।कटाई-मड़ाई करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि खलिहान एवं मड़ाई यंत्र आदि के द्वारा किसी अन्य प्रजाति के बीज मिश्रित न होने पाएं । इसकी विशेष सावधानी रखते हुए खलिहान एवं थे्रसर आदि को साफ रखते हुए भण्डारण साफ बोरों में करना चाहिए ।
उपज
प्रजातियों तथा खेत की उर्वरता के आधार पर उपज प्राप्त होती है । सामान्यतः 15-25 कुन्टल दाना प्रति हैक्टेयर तक उत्पादन हो जाता है ।
भण्डारण
उत्पादित चने को अच्छी तरह सुखा कर धातु से बनी बखार या कोठियों में अल्यूमिनियम फाॅस्फॅाइड की 3 ग्राम की 2 गोली प्रति कुन्टल की दर से हवा अवरोधी बनाकर भण्डारण करते हैं ।
चने की खेती के प्रभावी बिन्दु
गर्मी में चने की बुआई वाले खेत की मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करने पर भूमि जनित रोगों एवं खरपतवारों से सुरक्षा होती है ।
उकठा रोग से बचाव के लिए देर से बुआई नवम्बर के द्वितीय सप्ताह में करनी चाहिए ।
खाद एवं उर्वरक की मात्रा मृदा परीक्षण के आधार पर सही समय एवं उचित विधि से करना चाहिए ।
चने में स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई ज्यादा लाभकारी होती है ।
फल बनते समय सिंचाई नहीं करनी चाहिए अन्यथा नुकसान हो सकता है ।
जीवांश खादों का प्रयोग अवश्य करना चाहिए ।
शुद्ध एवं प्रमाणित बीज की बुआई चना राइजोबियम से बीज शोधन के बाद ही करनी चाहिए ।
कीड़े एवं बीमारी से बचाने के लिए नियमित निगरानी करनी चाहिए तथा आई.पी.एम. विधि अपनानी चाहिए ।
खरपतवारों का प्रकोप होने पर उसका नियंत्रण निराई गुड़ाई विधि से किया जाना ज्यादा लाभकर रहता है
। पाइराइट/जिप्सम/सिंगल सुपर फाॅस्टेट उर्वरक के रूप में सल्फर की प्रतिपूर्ति करनी चाहिए ।
काबुली चने में 2 प्रतिशत बोरान का छिड़काव करना चाहिए ।
चने का उकठा एवं मूल विगलन अवरोधी प्रजातियाँ जैसे-अवरोधी, पूसा 212, के. डब्लू. आर. 108, एच. 335 की बुआई करना चाहिए तथा इसको एस्कोकाइट झुलसा अवरोधी प्रजाति – गौरव, बी.जी.271 की बुआई करनी चाहिए ।
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